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Sunday 16 October 2016

भक्ति आंदोलन

मध्‍यकालीन भारत का सांस्‍कृतिक इतिहास में एक महत्‍वपूर्ण पड़ाव था सामाजिक - धार्मिक सुधारकों की धारा द्वारा समाज में लाई गई मौन क्रांति, एक ऐसी क्रांति जिसे भक्ति अभियान के नाम से जाना जाता है। यह अभियान हिन्‍दुओं, मुस्लिमों और सिक्‍खों द्वारा भारतीय उप महाद्वीप में भगवान की पूजा के साथ जुड़े रीति रिवाजों के लिए उत्तरदायी था। उदाहरण के लिए, हिन्‍दू मंदिरों में कीर्तन, दरगाह में कव्‍वाली (मुस्लिमों द्वारा) और गुरुद्वारे में गुरबानी का गायन, ये सभी मध्‍यकालीन इतिहास में (800 - 1700) भारतीय भक्ति आंदोलन से उत्‍पन्‍न हुए हैं। इस हिन्‍दू क्रांतिकारी अभियान के नेता थे शंकराचार्य, जो एक महान विचारक और जाने माने दार्शनिक रहे। इस अभियान को चैतन्‍य महाप्रभु, नामदेव, तुकाराम, जयदेव ने और अधिक मुखरता प्रदान की। इस अभियान की प्रमुख उपलब्धि मूर्ति पूजा को समाप्‍त करना रहा।

भक्ति आंदोलन के नेता रामानंद ने राम को भगवान के रूप में लेकर इसे केन्द्रित किया। उनके बारे में बहुत कम जानकारी है, परन्‍तु ऐसा माना जाता है कि वे 15वीं शताब्‍दी के प्रथमार्ध में रहे। उन्‍होंने सिखाया कि भगवान राम सर्वोच्‍च भगवान हैं और केवल उनके प्रति प्रेम और समर्पण के माध्‍यम से तथा उनके पवित्र नाम को बार - बार उच्‍चारित करने से ही मुक्ति पाई जाती है।
चैतन्‍य महाप्रमु एक पवित्र हिन्‍दू भिक्षु और सामाजिक सुधार थे तथा वे सोलहवीं शताब्‍दी के दौरान बंगाल में हुए। भगवान के प्रति प्रेम भाव रखने के प्रबल समर्थक, भक्ति योग के प्रवर्तक, चैतन्‍य ने ईश्‍वर की आराधना श्रीकृष्‍ण के रूप में की।
श्री रामनुज आचार्य भारतीय दर्शनशास्‍त्री थे और उन्‍हें सर्वाधिक महत्‍वपूर्ण वैष्‍णव संत के रूप में मान्‍यता दी गई है। रामानंद ने उत्तर भारत में जो किया वही रामानुज ने दक्षिण भारत में किया। उन्‍होंने रुढिवादी कुविचार की बढ़ती औपचारिकता के विरुद्ध आवाज उठाई और प्रेम तथा समर्पण की नींव पर आधारित वैष्‍णव विचाराधारा के नए सम्‍प्रदायक की स्‍थापना की। उनका सर्वाधिक असाधारण योगदान अपने मानने वालों के बीच जाति के भेदभाव को समाप्‍ करना।
बारहवीं और तेरहवीं शताब्‍दी में भक्ति आंदोलन के अनुयायियों में भगत नामदेव और संत कबीर दास शामिल हैं, जिन्‍होंने अपनी रचनाओं के माध्‍यम से भगवान की स्‍तुति के भक्ति गीतों पर बल दिया।
प्रथम सिक्‍ख गुरु, और सिक्‍ख धर्म के प्रवर्तक, गुरु नानक जी भी निर्गुण भक्ति संत थे और समाज सुधारक थे। उन्‍होंने सभी प्रकार के जाति भेद और धार्मिक शत्रुता तथा रीति रिवाजों का विरोध किया। उन्‍होंने ईश्‍वर के एक रूप माना तथा हिन्‍दू और मुस्लिम धर्म की औपचारिकताओं तथा रीति रिवाजों की आलोचना की। गुरु नानक का सिद्धांत सभी लोगों के लिए था। उन्‍होंने हर प्रकार से समानता का समर्थन किया।
सोलहवीं और सत्रहवीं शताब्‍दी में भी अनेक धार्मिक सुधारकों का उत्‍थान हुआ। वैष्‍णव सम्‍प्रदाय के राम के अनुयायी तथा कृष्‍ण के अनुयायी अनेक छोटे वर्गों और पंथों में बंट गए। राम के अनुयायियों में प्रमुख संत कवि तुलसीदास थे। वे अत्‍यंत विद्वान थे और उन्‍होंने भारतीय दर्शन तथा साहित्‍य का गहरा अध्‍ययन किया। उनकी महान कृति 'राम चरित मानस' जिसे जन साधारण द्वारा तुलसीकृत रामायण कहा जाता है, हिन्‍दू श्रृद्धालुओं के बीच अत्‍यंत लोकप्रिय है। उन्‍होंने लोगों के बीच श्री राम की छवि सर्वव्‍यापी, सर्व शक्तिमान, दुनिया के स्‍वामी और परब्रह्म के साकार रूप से बनाई।
कृष्‍ण के अनुयायियों ने 1585 ए. डी में हरिवंश के अंतर्गत राधा बल्‍लभी पंथ की स्‍थापना की। सूर दास ने ब्रज भाषा में ''सूर सरागर'' की रचना की, जो श्री कृष्‍ण के मोहक रूप तथा उनकी प्रेमिका राधा की कथाओं से परिपूर्ण है।

सूफीवाद

पद सूफी, वली, दरवेश और फकीर का उपयोग मुस्लिम संतों के लिए किया जाता है, जिन्‍होंने अपनी पूर्वाभासी शक्तियों के विकास हेतु वैराग्‍य अपनाकर, सम्‍पूर्णता की ओर जाकर, त्‍याग और आत्‍म अस्‍वीकार के माध्‍यम से प्रयास किया। बारहवीं शताब्‍दी ए.डी. तक, सूफीवाद इस्‍लामी सामाजिक जीवन के एक सार्वभौमिक पक्ष का प्रतीक बन गया, क्‍योंकि यह पूरे इस्‍लामिक समुदाय में अपना प्रभाव विस्‍तारित कर चुका था।
सूफीवाद इस्‍लाम धर्म के अंदरुनी या गूढ़ पक्ष को या मुस्लिम धर्म के रहस्‍यमयी आयाम का प्रतिनिधित्‍व करता है। जबकि, सूफी संतों ने सभी धार्मिक और सामुदायिक भेदभावों से आगे बढ़कर विशाल पर मानवता के हित को प्रोत्‍साहन देने के लिए कार्य किया। सूफी सन्‍त दार्शनिकों का एक ऐसा वर्ग था जो अपनी धार्मिक विचारधारा के लिए उल्‍लेखनीय रहा। सूफियों ने ईश्‍वर को सर्वोच्‍च सुंदर माना है और ऐसा माना जाता है कि सभी को इसकी प्रशंसा करनी चाहिए, उसकी याद में खुशी महसूस करनी चाहिए और केवल उसी पर ध्‍यान केन्द्रित करना चाहिए। उन्‍होंने विश्‍वास किया कि ईश्‍वर ''माशूक'' और सूफी ''आशिक'' हैं।
सूफीवाद ने स्‍वयं को विभिन्‍न 'सिलसिलों' या क्रमों में बांटा। सर्वाधिक चार लोकप्रिय वर्ग हैं चिश्‍ती, सुहारावार्डिस, कादिरियाह और नक्‍शबंदी।
सूफीवाद ने शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में जडें जमा लीं और जन समूह पर गहरा सामाजिक, राजनैतिक और सांस्‍कृतिक प्रभाव डाला। इसने हर प्रकार के धार्मिक औपचारिक वाद, रुढिवादिता, आडंबर और पाखंड के विरुद्ध आवाज़ उठाई तथा एक ऐसे वैश्विक वर्ग के स़ृजन का प्रयास किया जहां आध्‍यात्मिक पवित्रता ही एकमात्र और अंतिम लक्ष्‍य है। एक ऐसे समय जब राजनैतिक शक्ति का संघर्ष पागलपन के रूप में प्रचलित था, सूफी संतों ने लोगों को नैतिक बाध्‍यता का पाठ पढ़ाया। संघर्ष और तनाव से टूटी दुनिया के लिए उन्‍होंने शांति और सौहार्द लाने का प्रयास किया। सूफीवाद का सबसे महत्‍वपूर्ण योगदान यह है कि उन्‍होंने अपनी प्रेम की भावना को विकसित कर हिन्‍दू - मुस्लिम पूर्वाग्रहों के भेद मिटाने में सहायता दी और इन दोनों धार्मिक समुदायों के बीच भाईचारे की भावना उपत्‍न्‍न की।

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