अमेरिका में नस्ल और वर्ग भेद पर आधारित व्यंग्य 'द सेलआउट' के लेखन हेतु अमेरिकी लेखक पॉल बीटी को प्रतिष्ठित मैन बुकर पुरस्कार प्रदान किया गया. यह पुरस्कार प्राप्त करने वाले वह पहले अमेरिकी हैं.
तीसरी साल यह पुरस्कार किसी भी राष्ट्रीयता के उपन्यास लेखक को प्रदान किया गया. डचेज़ ऑफ कार्नवॉल कैमिला पार्कर बाउल्स ने पॉल बीटी को पुरस्कार प्रदान किया.
लंदन के गिल्डहॉल में 25 अक्टूबर 2016 को आयोजित समारोह में 54 वर्षीय लेखक को साहित्यिक पुरस्कार बुकर के तहत 50,000 पाउंड दिए गए.
'द सेलआउट' ने मैडेलीन थीन के 'डू नॉट से वी हैव नथिंग' समेत पांच उपन्यासों को पुरस्कार की दौड़ में पीछे छोड़ दिया.
इसके अलावा ग्रीम मैक्री बर्नेट का 'हिज ब्लडी प्रोजेक्ट', डेबोराह लेवी का 'हॉट मिल्क',ओट्टेस्सा मोशफेग का 'एलीन' और डेविड स्जालाय का 'ऑल डेट मैन इस' इस दौड़ में शामिल थे. शॉर्टलिस्ट किए गए लेखकों को 2,500 पाउंड प्रदान किए गए.
उपन्यास द सेलआउट के बारे में-
द सेलआउट में एक अफ्रीकी अमेरिकी व्यक्ति की कहानी बयां की गई है. पुरस्कार निर्णायकों के अनुसार यह उपन्यास 'स्तब्ध कर देने वाला और अप्रत्याशित रूप से मजेदार' है.पॉल बीटी के कार्य की तुलना मार्क ट्वेन तथा जोनाथन स्विफ्ट से की.पॉल बीटी के अनुसार 'यह मुश्किल पुस्तक है. मेरे लिए इसे लिखना मुश्किल था, मैं जानता हूं कि इसे पढ़ना मुश्किल है.पुस्तक में राजनीति की पृष्ठभूमि में तीक्ष्ण समझ, बोध एवं हास्य विनोद का परिचय दिया गया है.न्याय मंडल के अनुसार उपन्यास 'द सेलआउट' अत्यंत दुर्लभ पुस्तकों में से एक है.उपन्यास 'द सेलआउट' में व्यंग्य का बेहतरीन प्रयोग किया गया है.यह पुस्तक समकालीन अमेरिकी समाज के दिल को छूती है.उपन्यास 'द सेलआउट' हंसाने के साथ -साथ चौंकाता भी है.यह उपन्यास हास्य से भरपूर होने के साथ साथ दर्द का भी एहसास कराता है.
पॉल बीटी के बारे में-
पॉल बीटी का जन्म लॉस एंजिलिस हुआ. वर्तमान में वह न्यूयॉर्क में निवासित हैं.आरम्भ में वह लेखन को ज्यादा पसंद नहीं करते थे.पॉल बीटी ने इससे पहले 'स्लमबरलैंड', 'टफ' और 'द व्हाइट ब्वॉय शफल' नामक तीन उपन्यास लिखे हैं.
मैन बुकर पुरस्कार के बारे में-
मैन बुकर पुरस्कार फॉर फिक्शन, जिसे लघु रूप में मैन बुकर पुरस्कार या बुकर पुरस्कार कहा जाता है.कॉमनवैल्थ या आयरलैंड के नागरिक द्वारा लिखे गए मौलिक अंग्रेजी उपन्यास के लिए प्रति वर्ष दिया जाता है.बुकर पुरस्कार की स्थापना सन् 1969 में इंगलैंड की बुकर मैकोनल कंपनी द्वारा की गई.पुरस्कार के तहत 60 हज़ार पाउण्ड की राशि विजेता लेखक को दी जाती है.इस पुरस्कार हेतु पहले उपन्यासों की एक लंबी सूची तैयार की जाती है और फिर पुरस्कार वाले दिन की शाम के भोज में पुरस्कार विजेता की घोषणा की जाती है.पहला बुकर पुरस्कार अल्बानिया के उपन्यासकार इस्माइल कादरे को दिया गया था.वर्ष 2008 का यह पुरस्कार भारतीय लेखक अरविन्द अडिग को दिया गया. अडिग को मिलाकर कुल 5 बार यह पुरस्कार भारतीय मूल के लेखकों को मिला.वी एस नाइपॉल, अरुंधति राय, सलमान रश्दी और किरण देसाई और कुल 9 पुरस्कार विजेता उपन्यास ऐसे हैं जिनका कथानक भारत या भारतीयों से प्रेरित है.
न्याय मंडल की अध्यक्ष इतिहासकार अमांडा फोरमैन के अनुसार चार घंटे के विचार विमर्श के बाद इस उपन्यास का चयन सर्वसम्मति से किया गया.
'व्यंग्य एक मुश्किल विधा है और अमूमन इसके साथ न्याय नहीं हो पाता. यह पुस्तक समाज की हर पाबंदी का दम निकाल देती है.
पुरस्कार हेतु दो ब्रितानी, दो अमेरिकी, एक कनाडाई और एक ब्रितानी-कनाडाई लेखक को भी शॉर्टलिस्ट किया गया था.
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