जब मुहम्मद तुगलक दक्षिण में अपनी शक्ति खो रहा था तब दो हिन्दु राजकुमार हरिहर और बूक्का ने कृष्णा और तुंगभद्रा नदियों के बीच 1336 में एक स्वतंत्र राज्य की स्थापना की। जल्दी ही उन्होंने उत्तर दिशा में कृष्णा नदी तथा दक्षिण में कावेरी नदी के बीच इस पूरे क्षेत्र पर अपना राज्य स्थापित कर लिया। विजयनगर साम्राज्य की बढ़ती ताकत से इन कई शक्तियों के बीच टकराव हुआ और उन्होंने बहमनी साम्राज्य के साथ बार बार लड़ाइयां लड़ी।
विजयनगर साम्राज्य के सबसे प्रसिद्ध राजा कृष्ण देव राय थे। विजयनगर का राजवंश उनके कार्यकाल में भव्यता के शिखर पर पहुंच गया। वे उन सभी लड़ाइयों में सफल रहे जो उन्होंने लड़ी। उन्होंने ओडिशा के राजा को पराजित किया और विजयवाड़ा तथा राज महेन्द्री को जोड़ा।
कृष्ण देव राय ने पश्चिमी देशों के साथ व्यापार को प्रोत्साहन दिया। उनके पुर्तगालियों के साथ अच्छे संबंध थे, जिनका व्यापार उन दिनों भारत के पश्चिमी तट पर व्यापारिक केन्द्रों के रूप में स्थापित हो चुका था। वे न केवल एक महान योद्धा थे बल्कि वे कला के पारखी और अधिगम्यता के महान संरक्षक रहे। उनके कार्यकाल में तेलगु साहित्य काफी फला फुला। उनके तथा उनके उत्तरवर्तियों द्वारा चित्रकला, शिल्पकला, नृत्य और संगीत को काफी बढ़ावा दिया गया। उन्होंने अपने व्यक्तिगत आकर्षण, दयालुता और आदर्श प्रशासन द्वारा लोगों को प्रश्रय दिया।
विजयनगर साम्राज्य का पतन 1529 में कृष्ण देव राय की मृत्यु के साथ शुरू हुआ। यह साम्राज्य 1565 में पूरी तरह समाप्त हो गया जब आदिलशाही, निजामशाही, कुतुब शाही और बरीद शाही के संयुक्त प्रयासों द्वारा तालीकोटा में रामराय को पराजित किया गया। इसके बाद यह साम्राज्य छोटे छोटे राज्यों में टूट गया।
बहमनी राज्य
बहमनी का मुस्लिम राज्य दक्षिण के महान व्यक्तियों द्वारा स्थापित किया गया, जिन्होंने सुल्तान मुहम्मद तुगलक की दमनकारी नीतियों के विरुद्ध बकावत की। वर्ष 1347 में हसन अब्दुल मुजफ्फर अल उद्दीन बहमन शाह के नाम से राजा बना और उसने बहमनी राजवंश की स्थापना की। यह राजवंश लगभग 175 वर्ष तक चला और इसमें 18 शासक हुए। अपनी भव्यता की ऊंचाई पर बहमनी राज्य उत्तर में कृष्णा सें लेकर नर्मदा तक विस्तारित हुआ और बंगाल की खाड़ी के तट से लेकर पूर्व - पश्चिम दिशा में अरब सागर तक फैला। बहमनी के शासक कभी कभार पड़ोसी हिन्दू राज्य विजयनगर से युद्ध करते थे।
बहमनी राज्य के सर्वाधिक विशिष्ट व्यक्तित्व महमूद गवन थे, जो दो दशक से अधिक समय के लिए अमीर उल अलमारा के प्रधान राज्यमंत्री रहे। उन्होंने कई लड़ाइयां लड़ी, अनेक राजाओं को पराजित किया तथा कई क्षेत्रों को बहमनी राज्य में जोड़ा। राज्य के अंदर उन्होंने प्रशासन में सुधार किया, वित्तीय व्यवस्था को संगठित किया, जनशिक्षा को प्रोत्साहन दिया, राजस्व प्रणाली में सुधार किया, सेना को अनुशासित किया एवं भ्रष्टाचार को समाप्त कर दिया। चरित और ईमानदारी के धनी उन्होंने अपनी उच्च प्रतिष्ठा को विशिष्ट व्यक्तियों के दक्षिणी समूह से ऊंचा बनाए रखा, विशेष रूप से निज़ाम उल मुल, और उनकी प्रणाली से उनका निष्पादन हुआ। इसके साथ बहमनी साम्राज्य का पतन आरंभ हो गया जो उसके अंतिम राजा कली मुल्लाह की मृत्यु से 1527 में समाप्त हो गया। इसके साथ बहमनी साम्राज्य पांच क्षेत्रीय स्वतंत्र भागों में टूट गया - अहमद नगर, बीजापुर, बरार, बिदार और गोलकोंडा।
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