पैगम्बर मुहम्मद की मृत्यु के बाद प्रथम शताब्दी में दक्षिण एशिया के अंदर इस्लाम का आरंभिक प्रवेश हुआ। उमायद खलीफा ने डमस्कस में बलूचिस्तान और सिंध पर 711 में मुहम्मद बिन कासिन के नेतृत्व में चढ़ाई की। उन्होंने सिंध और मुलतान पर कब्जा कर लिया। उनकी मौत के 300 साल बाद सुल्तान मेहमूद गजनी, जो एक खूंख्वार नेता थे, ने राजपूत राजशाहियों के विरुद्ध तथा धनवान हिन्दू मंदिरों पर छापामारी की एक श्रृंखला आरंभ की तथा भावी चढ़ाइयों के लिए पंजाब में अपना एक आधार स्थापित किया। वर्ष 1024 में सुल्तान ने अरब सागर के साथ काठियावाड़ के दक्षिणी तट पर अपना अंतिम प्रसिद्ध खोज का दौर शुरु किया, जहां उसने सोमनाथ शहर पर हमला किया और साथ ही अनेक प्रतिष्ठित हिंदू मंदिरों पर आक्रमण किया।
भारत में मुस्लिम आक्रमण
मोहम्मद गोरी ने मुल्तान और पंजाब पर विजय पाने के बाद 1175 ए.डी. में भारत पर आक्रमण किया, वह दिल्ली की ओर आगे बढ़ा। उत्तरी भारत के बहादुर राजपूत राजाओं ने पृथ्वी राज चौहान के नेतृत्व में 1191 ए.डी. में तराइन के प्रथम युद्ध में पराजित किया। एक साल चले युद्ध के पश्चात मोहम्मद गोरी अपनी पराजय का बदला लेने दोबारा आया। वर्ष 1192 ए.डी. के दौरान तराइन में एक अत्यंत भयानक युद्ध लड़ा गया, जिसमें राजपूत पराजित हुए और पृथ्वी राज चौहान को पकड़ कर मौत के घाट उतार दिया गया। तराइन का दूसरा युद्ध एक निर्णायक युद्ध सिद्ध हुआ और इसमें उत्तरी भारत में मुस्लिम शासन की आधारशिला रखी।
दिल्ली की सल्तनत
भारत के इतिहास में 1206 ए.डी. और 1526 ए.डी. के बीच की अवधि दिल्ली का सल्तनत कार्यकाल कही जाती है। इस अवधि के दौरान 300 वर्षों से अधिक समय में दिल्ली पर पांच राजवंशों ने शासन किया। ये थे गुलाम राजवंश (1206-90), खिलजी राजवंश (1290-1320), तुगलक राजवंश (1320-1413), सायीद राजवंश (1414-51), और लोदी राजवंश (1451-1526)।
गुलाम राजवंश
इस्लाम में समानता की संकल्पना और मुस्लिम परम्पराएं दक्षिण एशिया के इतिहास में अपने चरम बिन्दु पर पहुंच गई, जब गुलामों ने सुल्तान का दर्जा हासिल किया। गुलाम राजवंश ने लगभग 84 वर्षों तक इस उप महाद्वीप पर शासन किया। यह प्रथम मुस्लिम राजवंश था जिसने भारत पर शासन किया। मोहम्मद गोरी का एक गुलाम कुतुब उद दीन ऐबक अपने मालिक की मृत्यु के बाद शासक बना और गुलाम राजवंश की स्थापना की। वह एक महान निर्माता था जिसने दिल्ली में कुतुब मीनार के नाम से विख्यात आश्चर्यजनक 238 फीट ऊंचे पत्थर के स्तंभ का निर्माण कराया।
गुलाम राजवंश का अगला महत्वपूर्ण राजा शम्स उद दीन इलतुतमश था, जो कुतुब उद दीन ऐबक का गुलाम था। इलतुतमश ने 1211 से 1236 के बीच लगभग 26 वर्ष तक राज किया और वह मजबूत आधार पर दिल्ली की सल्तनत स्थापित करने के लिए उत्तरदायी था। इलतुतमश की सक्षम बेटी, रजिया बेगम अपनी और अंतिम मुस्लिम महिला थी जिसने दिल्ली के तख्त पर राज किया। वह बहादुरी से लड़ी किन्तु अंत में पराजित होने पर उसे मार डाला गया।
अंत में इलतुतमश के सबसे छोटे बेटे नसीर उद दीन मेहमूद को 1245 में सुल्तान बनाया गया। जबकि मेहमूद ने लगभग 20 वर्ष तक भारत पर शासन किया। किन्तु अपने पूरे कार्यकाल में उसकी मुख्य शक्ति उसके प्रधानमंत्री बलबन के हाथों में रही। मेहमूद की मौत होने पर बलबन ने सिंहासन पर कब्ज़ा किया और दिल्ली पर राज किया। वर्ष 1266 से 1287 तक बलबन ने अपने कार्यकाल में साम्राज्य का प्रशासनिक ढांचा सुगठित किया तथा इलतुतमश द्वारा शुरू किए गए कार्यों को पूरा किया।
खिलजी राजवंश
बलवन की मौत के बाद सल्तनत कमजोर हो गई और यहां कई बगावतें हुईं। यही वह समय था जब राजाओं ने जलाल उद दीन खिलजी को राजगद्दी पर बिठाया। इससे खिलजी राजवंश की स्थापना आरंभ हुई। इस राजवंश का राजकाज 1290 ए.डी. में शुरू हुआ। अला उद दीन खिलजी जो जलाल उद दीन खिलजी का भतीजा था, ने षड़यंत्र किया और सुल्तान जलाल उद दीन को मार कर 1296 में स्वयं सुल्तान बन बैठा। अला उद दीन खिलजी प्रथम मुस्लिम शासक था जिसके राज्य ने पूरे भारत का लगभग सारा हिस्सा दक्षिण के सिरे तक शामिल था। उसने कई लड़ाइयां लड़ी, गुजरात, रणथम्भौर, चित्तौड़, मलवा और दक्षिण पर विजय पाई। उसके 20 वर्ष के शासन काल में कई बार मंगोलों ने देश पर आक्रमण किया किन्तु उन्हें सफलतापूर्वक पीछे खदेड़ दिया गया। इन आक्रमणों से अला उद दीन खिलजी ने स्वयं को तैयार रखने का सबक लिया और अपनी सशस्त्र सेनाओं को संपुष्ट तथा संगठित किया। वर्ष 1316 ए.डी. में अला उद दीन की मौत हो गई और उसकी मौत के साथ खिलजी राजवंश समाप्त हो गया।
तुगलक राजवंश
गयासुद्दीन तुगलक, जो अला उद दीन खिलजी के कार्यकाल में पंजाब का राज्यपाल था, 1320 ए.डी. में सिंहासन पर बैठा और तुगलक राजवंश की स्थापना की। उसने वारंगल पर विजय पाई और बंगाल में बगावत की। मुहम्मद बिन तुगलक ने अपने पिता का स्थान लिया और अपने राज्य को भारत से आगे मध्य एशिया तक आगे बढ़ाया। मंगोल ने तुगलक के शासन काल में भारत पर आक्रमण किया और उन्हें भी इस बार हराया गया।
मुहम्मद बिन तुगलक ने अपनी राजधानी को दक्षिण में सबसे पहले दिल्ली से हटाकर देवगिरी में स्थापित किया। जबकि इसे दो वर्ष में वापस लाया गया। उसने एक बड़े साम्राज्य को विरासत में पाया था किन्तु वह कई प्रांतों को अपने नियंत्रण में नहीं रख सका, विशेष रूप से दक्षिण और बंगाल को। उसकी मौत 1351 ए.डी. में हुई और उसके चचेरे भाई फिरोज़ तुगलक ने उसका स्थान लिया।
फिरोज तुगलक ने साम्राज्य की सीमाएं आगे बढ़ाने में बहुत अधिक योगदान नहीं दिया, जो उसे विरासत में मिली थी। उसने अपनी शक्ति का अधिकांश भाग लोगों के जीवन को बेहतर बनाने में लगाया। वर्ष 1338 ने उसकी मौत के बाद तुगलक राजवंश लगभग समाप्त हो गया। यद्यपि तुगलक शासन 1412 तक चलता रहा फिर भी 1398 में तैमूर द्वारा दिल्ली पर आक्रमण को तुगलक साम्राज्य का अंत कहा जा सकता है।
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